loving poetry
Saturday 26 May 2012
Friday 25 May 2012
Thursday 24 May 2012
Monday 21 May 2012
Sunday 20 May 2012
♥... दिल तख़्त नशीं ...♥
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क्यूँ ज़माने पे ऐतबार करूँ
अपनी आँखों को अश्कबार करूँ
सिर्फ़ ख्वाबों पे ऐतबार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ
मेरी रग-रग में है महक तेरी
मेरे चेहरे पे है चमक तेरी
मेरी आवाज़ में खनक तेरी
ज़र्रे - ज़र्रे में है धनक तेरी
क्यूँ न मैं तुझपे दिल निसार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ
तुझपे कुरबां करूँ हयात मेरी
तुझसे रोशन है कायनात मेरी
बिन तेरे क्या है फिर बिसात मेरी
जाने कब होगी तुझसे बात मेरी
कब तलक दिल को बेक़रार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ
मेरी आँखों की रोशनी तू है
मेरी साँसों की ताजगी तू है
मेरी रातों की चांदनी तू है
मेरी जां तू है, ज़िन्दगी तू है
हर घड़ी तेरा इन्तिज़ार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूं
तू ही उल्फ़त है, तू ही चाहत है
अब फ़क़त तेरी ही ज़रूरत है
हसरतों की ये एक हसरत है
इश्क़ से बढ़के भी इबादत है?
तुझको ख्वाबों से क्यूँ फरार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ
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क्यूँ ज़माने पे ऐतबार करूँ
अपनी आँखों को अश्कबार करूँ
सिर्फ़ ख्वाबों पे ऐतबार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ
मेरी रग-रग में है महक तेरी
मेरे चेहरे पे है चमक तेरी
मेरी आवाज़ में खनक तेरी
ज़र्रे - ज़र्रे में है धनक तेरी
क्यूँ न मैं तुझपे दिल निसार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ
तुझपे कुरबां करूँ हयात मेरी
तुझसे रोशन है कायनात मेरी
बिन तेरे क्या है फिर बिसात मेरी
जाने कब होगी तुझसे बात मेरी
कब तलक दिल को बेक़रार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ
मेरी आँखों की रोशनी तू है
मेरी साँसों की ताजगी तू है
मेरी रातों की चांदनी तू है
मेरी जां तू है, ज़िन्दगी तू है
हर घड़ी तेरा इन्तिज़ार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूं
तू ही उल्फ़त है, तू ही चाहत है
अब फ़क़त तेरी ही ज़रूरत है
हसरतों की ये एक हसरत है
इश्क़ से बढ़के भी इबादत है?
तुझको ख्वाबों से क्यूँ फरार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ
नैनो मे बसे है ज़रा याद रखना,
अगर काम पड़े तो याद करना,
मुझे तो आदत है आपको याद करने की,
अगर हिचकी आए तो माफ़ करना.......
ये दुनिया वाले भी बड़े अजीब होते है
कभी दूर तो कभी क़रीब होते है
दर्द ना बताओ तो हमे कायर कहते है
और दर्द बताओ तो हमे शायर कहते है .......
एक मुलाक़ात करो हमसे इनायत समझकर,
हर चीज़ का हिसाब देंगे क़यामत समझकर,
मेरी दोस्ती पे कभी शक ना करना,
हम दोस्ती भी करते है इबादत समझकर.........
ख़ामोशियों की वो धीमी सी आवाज़ है ,
तन्हाइयों मे वो एक गहरा राज़ है ,
मिलते नही है सबको ऐसे दोस्त ,
आप जो मिले हो हमे ख़ुद पे नाज़ है.....
अगर काम पड़े तो याद करना,
मुझे तो आदत है आपको याद करने की,
अगर हिचकी आए तो माफ़ करना.......
ये दुनिया वाले भी बड़े अजीब होते है
कभी दूर तो कभी क़रीब होते है
दर्द ना बताओ तो हमे कायर कहते है
और दर्द बताओ तो हमे शायर कहते है .......
एक मुलाक़ात करो हमसे इनायत समझकर,
हर चीज़ का हिसाब देंगे क़यामत समझकर,
मेरी दोस्ती पे कभी शक ना करना,
हम दोस्ती भी करते है इबादत समझकर.........
ख़ामोशियों की वो धीमी सी आवाज़ है ,
तन्हाइयों मे वो एक गहरा राज़ है ,
मिलते नही है सबको ऐसे दोस्त ,
आप जो मिले हो हमे ख़ुद पे नाज़ है.....
पर्व ज्वाला का, नहीं वरदान की वेला !
न चन्दन फूल की वेला !
चमत्कृत हो न चमकीला
किसी का रूप निरखेगा,
निठुर होकर उसे अंगार पर
सौ बार परखेगा
खरे की खोज है इसको, नहीं यह क्षार से खेला !
किरण ने तिमिर से माँगा
उतरने का सहारा कब ?
अकेले दीप ने जलते समय
किसको पुकारा कब ?
किसी भी अग्निपंथी को न भाता शब्द का मेला !
किसी लौ का कभी सन्देश
या आहूवान आता है ?
शलभ को दूर रहना ज्योति से
पल-भर न भाता है !
चुनौती का करेगा क्या, न जिसने ताप को झेला !
खरे इस तत्व से लौ का
कभी टूटा नहीं नाता
अबोला, मौन भाषाहीन
जलकर एक हो जाता !
मिलन-बिछुड़न कहाँ इसमें, न यह प्रतिदान की वेला !
सभी का देवता है एक
जिसके भक्त हैं अनगिन,
मगर इस अग्नि-प्रतिमा में
सभी अंगार जाते बन !
इसी में हर उपासक को मिला अद्वैत अलबेला !
न यह वरदान की वेला
न चन्दन फूल का मेला !
पर्व ज्वाला का, न यह वरदान की वेला।
न चन्दन फूल की वेला !
चमत्कृत हो न चमकीला
किसी का रूप निरखेगा,
निठुर होकर उसे अंगार पर
सौ बार परखेगा
खरे की खोज है इसको, नहीं यह क्षार से खेला !
किरण ने तिमिर से माँगा
उतरने का सहारा कब ?
अकेले दीप ने जलते समय
किसको पुकारा कब ?
किसी भी अग्निपंथी को न भाता शब्द का मेला !
किसी लौ का कभी सन्देश
या आहूवान आता है ?
शलभ को दूर रहना ज्योति से
पल-भर न भाता है !
चुनौती का करेगा क्या, न जिसने ताप को झेला !
खरे इस तत्व से लौ का
कभी टूटा नहीं नाता
अबोला, मौन भाषाहीन
जलकर एक हो जाता !
मिलन-बिछुड़न कहाँ इसमें, न यह प्रतिदान की वेला !
सभी का देवता है एक
जिसके भक्त हैं अनगिन,
मगर इस अग्नि-प्रतिमा में
सभी अंगार जाते बन !
इसी में हर उपासक को मिला अद्वैत अलबेला !
न यह वरदान की वेला
न चन्दन फूल का मेला !
पर्व ज्वाला का, न यह वरदान की वेला।
कि कुछ टूट गया है...!..?
सागर न समाओगे कि कुछ टूट गया है
जीता ही जलाओगे कि कुछ टूट गया है..
हँस हँस के किसी कोर के अश्कों को रौंद कर
क्या क्या न बताओगे कि कुछ टूट गया है..
अपनी तलाश में कि जो तुम चाँद तक गये
क्या लौट भी पाओगे कि कुछ टूट गया है..
चेहरे पे नया चेहरा लिये मिल जो गया वो
क्या हाँथ मिलाओगे कि कुछ टूट गया है..
हर ओर पीठ पीठ है "शाम भीड में
क्या साथ निभाओगे कि कुछ टूट गया है
सागर न समाओगे कि कुछ टूट गया है
जीता ही जलाओगे कि कुछ टूट गया है..
हँस हँस के किसी कोर के अश्कों को रौंद कर
क्या क्या न बताओगे कि कुछ टूट गया है..
अपनी तलाश में कि जो तुम चाँद तक गये
क्या लौट भी पाओगे कि कुछ टूट गया है..
चेहरे पे नया चेहरा लिये मिल जो गया वो
क्या हाँथ मिलाओगे कि कुछ टूट गया है..
हर ओर पीठ पीठ है "शाम भीड में
क्या साथ निभाओगे कि कुछ टूट गया है
छोटी-सी ज़िन्दगी में कितनी नादानी करे
इस नज़ारों को कोई देखे कि हैरानी करे
धूप में इन चश्मों को लिए फिरता हूँ मैं
कोई साया मेरे ख़्वाबों की निगहबानी करे
रात ऐसी चाहिए माँगे जो दिनभर का हिसाब
ख़्वाब ऐसा हो जो इन आँखों में वीरानी करे
एक मैं हूँ और दस्तक कितने दरवाज़ों पे दूँ
कितनी दहलीज़ों पे सज़दा एक पेशानी करे
साहिलों पर मैं खड़ा हूँ प्यासों की तरह
कोई जल-तरंग मेरी आँख को पानी करे
इस नज़ारों को कोई देखे कि हैरानी करे
धूप में इन चश्मों को लिए फिरता हूँ मैं
कोई साया मेरे ख़्वाबों की निगहबानी करे
रात ऐसी चाहिए माँगे जो दिनभर का हिसाब
ख़्वाब ऐसा हो जो इन आँखों में वीरानी करे
एक मैं हूँ और दस्तक कितने दरवाज़ों पे दूँ
कितनी दहलीज़ों पे सज़दा एक पेशानी करे
साहिलों पर मैं खड़ा हूँ प्यासों की तरह
कोई जल-तरंग मेरी आँख को पानी करे
भूल गया घर-आँगन यादों से बाहर बाज़ार हुआ
आज बहुत दिन बाद बेख़ुदी में ख़ुद का दीदार हुआ
टूट गये नाते-रिश्ते सब, चैन लूटते हाथों से
औरों की आँसुओं-भरी आँखों से कितना प्यार हुआ
लगा कि हर रस्ता अपना है हर ज़मीन है अपनी ही
अपनेपन से हरा-भरा हर दिन जैसे त्यौहार हुआ
बैठा रहा चैन से, जाते लोग रहे क्या-क्या पाने
पर जब दी आवाज़ शजर ने जाने को लाचार हुआ
‘कल सोचूँगा-क्या करना है’, कहता रहा मेरा रहबर
बीता कितना वक़्त और यह वादा कितनी बार हुआ
ख़ुद के लिए रहे बनते तुम तरह-तरह की दीवारें
खुली हवा से बह न सके, जीवन सारा बेकार हुआ
कब तक फैलाते जाओगे सौदे वहशी ख़्वाबों के
तुम भी अब दूकान समेटो, शाम हुई अंधियार हुआ
आओ थोड़ा वक़्त बचा है साथ-साथ हँस लें, गालें
लेन-देन का हिसाब जो हुआ सो मेरे यार हुआ
आज बहुत दिन बाद बेख़ुदी में ख़ुद का दीदार हुआ
टूट गये नाते-रिश्ते सब, चैन लूटते हाथों से
औरों की आँसुओं-भरी आँखों से कितना प्यार हुआ
लगा कि हर रस्ता अपना है हर ज़मीन है अपनी ही
अपनेपन से हरा-भरा हर दिन जैसे त्यौहार हुआ
बैठा रहा चैन से, जाते लोग रहे क्या-क्या पाने
पर जब दी आवाज़ शजर ने जाने को लाचार हुआ
‘कल सोचूँगा-क्या करना है’, कहता रहा मेरा रहबर
बीता कितना वक़्त और यह वादा कितनी बार हुआ
ख़ुद के लिए रहे बनते तुम तरह-तरह की दीवारें
खुली हवा से बह न सके, जीवन सारा बेकार हुआ
कब तक फैलाते जाओगे सौदे वहशी ख़्वाबों के
तुम भी अब दूकान समेटो, शाम हुई अंधियार हुआ
आओ थोड़ा वक़्त बचा है साथ-साथ हँस लें, गालें
लेन-देन का हिसाब जो हुआ सो मेरे यार हुआ
मेरी खामोशियों में भी फसाना ढूंढ लेती है
बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है
हकीकत जिद किए बैठी है चकनाचूर करने को
मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है
उठाती है जो खतरा हर कदम पर डूब जाने का
वही कोशिश समन्दर में खजाना ढूंढ लेती है
जुनूं मंजिल का, राहों में बचाता है भटकने से
मेरी दीवानगी अपना ठिकाना ढूंढ लेती
बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है
हकीकत जिद किए बैठी है चकनाचूर करने को
मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है
उठाती है जो खतरा हर कदम पर डूब जाने का
वही कोशिश समन्दर में खजाना ढूंढ लेती है
जुनूं मंजिल का, राहों में बचाता है भटकने से
मेरी दीवानगी अपना ठिकाना ढूंढ लेती
सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं
मांगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं
देखा तुझे सोचा तुझे चाहा तुझे पूजा तुझे
मेरी ख़ता मेरी वफ़ा तेरी ख़ता कुछ भी नहीं
जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाये रात भर
भेजा वही काग़ज़ उसे हमने लिखा कुछ भी नहीं
इक शाम की दहलीज़ पर बैठे रहे वो देर तक
आँखों से की बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं
दो चार दिन की बात है दिल ख़ाक में सो जायेगा
जब आग पर काग़ज़ रखा बाकी बचा कुछ भी नहीं
अहसास की ख़ुश्बू कहाँ आवाज़ के जुगनू कहाँ
ख़ामोश यादों के सिवा घर में रहा कुछ भी नहीं
मांगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं
देखा तुझे सोचा तुझे चाहा तुझे पूजा तुझे
मेरी ख़ता मेरी वफ़ा तेरी ख़ता कुछ भी नहीं
जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाये रात भर
भेजा वही काग़ज़ उसे हमने लिखा कुछ भी नहीं
इक शाम की दहलीज़ पर बैठे रहे वो देर तक
आँखों से की बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं
दो चार दिन की बात है दिल ख़ाक में सो जायेगा
जब आग पर काग़ज़ रखा बाकी बचा कुछ भी नहीं
अहसास की ख़ुश्बू कहाँ आवाज़ के जुगनू कहाँ
ख़ामोश यादों के सिवा घर में रहा कुछ भी नहीं
!!...ख़्वाब सुहाना बन गया अच्छा...!!
ग़म का फ़साना बन गया अच्छा
एक बहाना बन गया अच्छा
सरकार ने आके मेरा हाल तो पूछा
ग़म का...
तुम्हारे ख़यालों में खो जायें
ये जी चाहता है की सो जायें
देखो बातों-बातों में चाँदनी रातों में
ख़्वाब सुहाना बन गया अच्छा...
बतायें तुम्हें क्या कहाँ दर्द है
यहाँ हाथ रखना यहाँ दर्द है
देखो बातों बातों में दो ही मुलाकातों में
दिल ये निशाना बन गया अच्छा...
मुहब्बत की रंगीन महफ़िल में
जगह मिल गई आपके दिल में
देखो बातों-बातों में प्यार की बरातों में
अपना ठिकाना बन गया अच्छा...
ग़म का फ़साना बन गया अच्छा
एक बहाना बन गया अच्छा
सरकार ने आके मेरा हाल तो पूछा
ग़म का...
तुम्हारे ख़यालों में खो जायें
ये जी चाहता है की सो जायें
देखो बातों-बातों में चाँदनी रातों में
ख़्वाब सुहाना बन गया अच्छा...
बतायें तुम्हें क्या कहाँ दर्द है
यहाँ हाथ रखना यहाँ दर्द है
देखो बातों बातों में दो ही मुलाकातों में
दिल ये निशाना बन गया अच्छा...
मुहब्बत की रंगीन महफ़िल में
जगह मिल गई आपके दिल में
देखो बातों-बातों में प्यार की बरातों में
अपना ठिकाना बन गया अच्छा...
कहाँ जायेगी यह झंकार
जब नीरव हो जायेंगे जीवन-वीणा के तार
जब यह दीपक बुझ जायेगा
कहाँ प्रकाश शरण पायेगा!
किस अनंत में मँडरायेगा
चेतन खो आधार!
सभी ज्ञान, विज्ञान, बुद्धिबल
तन के साथ न जायेंगे जल!
यदि चित् महाचेतना से कल
हो ले एकाकार!
जड़ता से जब चलूँ विदा ले
चेतन भी यदि साथ छुड़ा ले
निज को किसके करूँ हवाले
खोल शून्य का द्वार!
कहाँ जायेगी यह झंकार
जब नीरव हो जायेंगे जीवन-वीणा के तार
जब नीरव हो जायेंगे जीवन-वीणा के तार
जब यह दीपक बुझ जायेगा
कहाँ प्रकाश शरण पायेगा!
किस अनंत में मँडरायेगा
चेतन खो आधार!
सभी ज्ञान, विज्ञान, बुद्धिबल
तन के साथ न जायेंगे जल!
यदि चित् महाचेतना से कल
हो ले एकाकार!
जड़ता से जब चलूँ विदा ले
चेतन भी यदि साथ छुड़ा ले
निज को किसके करूँ हवाले
खोल शून्य का द्वार!
कहाँ जायेगी यह झंकार
जब नीरव हो जायेंगे जीवन-वीणा के तार
कभी खुद को मैं ढूंढूं इस तरफ इक बार, ऐसा हो
निगाहे-रूह तुझ पर हो टिकी उस पार, ऐसा हो
मैं राहे-जिन्दगी में जिनको पीछे छोड़ आया था
वो यादें सब की सब आयें कभी उस पार, ऐसा हो
वो कुछ अशआर रिस कर गिर गए लब से कहीं मेरे
तेरे लब पे दिखाई दें मुझे उस पार, ऐसा हो
बहुत दिन से तुझे मैं दूर से ही चाहता हूँ, अब
लगूं खुल के गले तुझसे सरे-बाज़ार, ऐसा हो
किनारे पर खड़े हो कर तमाशा देखने वाला
कभी आके यहाँ हमसे मिले मंझधार, ऐसा हो
मेरे नगमे रहें ज़िंदा, भले ही नाम मिट जाये
फ़क़त मशहूर हो मुझमें छिपा फनकार, ऐसा हो .
निगाहे-रूह तुझ पर हो टिकी उस पार, ऐसा हो
मैं राहे-जिन्दगी में जिनको पीछे छोड़ आया था
वो यादें सब की सब आयें कभी उस पार, ऐसा हो
वो कुछ अशआर रिस कर गिर गए लब से कहीं मेरे
तेरे लब पे दिखाई दें मुझे उस पार, ऐसा हो
बहुत दिन से तुझे मैं दूर से ही चाहता हूँ, अब
लगूं खुल के गले तुझसे सरे-बाज़ार, ऐसा हो
किनारे पर खड़े हो कर तमाशा देखने वाला
कभी आके यहाँ हमसे मिले मंझधार, ऐसा हो
मेरे नगमे रहें ज़िंदा, भले ही नाम मिट जाये
फ़क़त मशहूर हो मुझमें छिपा फनकार, ऐसा हो .
उस रात मैं बहुत डर रहा था
क्योंकि मैं एक कब्रिस्तान के पास से गुजर रहा था
एक तो मौसम बदहाल था
और दूसरा गर्मी से मेरा बुरा हाल था
अचानक मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं
जब मेरी नजरें कब्र पर बैठे एक आदमी पर चढं गईं
मैंने कहा इतनी रात को यहां से कोई
भूलकर भी नहीं फटकता
यार तू कब्र पर बैठा है
तुझे डर नहीं लगता
मेरी बात सुनते ही वो ऐंठ गया
बोला इसमें डरने की क्या बात है
कब्र में गरमी लग रही थी,
इसलिए बाहर आके बैठ गया...
क्योंकि मैं एक कब्रिस्तान के पास से गुजर रहा था
एक तो मौसम बदहाल था
और दूसरा गर्मी से मेरा बुरा हाल था
अचानक मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं
जब मेरी नजरें कब्र पर बैठे एक आदमी पर चढं गईं
मैंने कहा इतनी रात को यहां से कोई
भूलकर भी नहीं फटकता
यार तू कब्र पर बैठा है
तुझे डर नहीं लगता
मेरी बात सुनते ही वो ऐंठ गया
बोला इसमें डरने की क्या बात है
कब्र में गरमी लग रही थी,
इसलिए बाहर आके बैठ गया...
है समय प्रतिकूल माना
पर समय अनुकूल भी है।
शाख पर इक फूल भी है॥
घन तिमिर में इक दिये की
टिमटिमाहट भी बहुत है
एक सूने द्वार पर
बेजान आहट भी बहुत है
लाख भंवरें हों नदी में
पर कहीं पर कूल भी है।
शाख पर इक फूल भी है॥
विरह-पल है पर इसी में
एक मीठा गान भी है
मरुस्थलों में रेत भी है
और नखलिस्तान भी है
साथ में ठंडी हवा के
मानता हूं धूल भी है।
शाख पर इक फूल भी है॥
है परम सौभाग्य अपना
अधर पर यह प्यास तो है
है मिलन माना अनिश्चित
पर मिलन की आस तो है
प्यार इक वरदान भी है
प्यार माना भूल भी है।
शाख पर इक फूल भी है॥
पर समय अनुकूल भी है।
शाख पर इक फूल भी है॥
घन तिमिर में इक दिये की
टिमटिमाहट भी बहुत है
एक सूने द्वार पर
बेजान आहट भी बहुत है
लाख भंवरें हों नदी में
पर कहीं पर कूल भी है।
शाख पर इक फूल भी है॥
विरह-पल है पर इसी में
एक मीठा गान भी है
मरुस्थलों में रेत भी है
और नखलिस्तान भी है
साथ में ठंडी हवा के
मानता हूं धूल भी है।
शाख पर इक फूल भी है॥
है परम सौभाग्य अपना
अधर पर यह प्यास तो है
है मिलन माना अनिश्चित
पर मिलन की आस तो है
प्यार इक वरदान भी है
प्यार माना भूल भी है।
शाख पर इक फूल भी है॥
वो चुप रहें तो मेरे दिल के दाग़ जलते हैं
जो बात कर लें तो बुझते चराग़ जलते हैं
कहो बुझें के जलें
हम अपनी राह चलें या तुम्हारी राह चलें
कहो बुझें के जलें
बुझें तो ऐसे के किसी ग़रीब का दिल
किसी ग़रीब का दिल
जलें तो ऐसे के जैसे चराग़ जलते हैं
यह खोई खोई नज़र
कभी तो होगी या सदा रहेगी उधर
यह खोई खोई नज़र
उधर तो एक सुलग़ता हुआ है वीराना
है एक वीराना
मगर इधर तो बहारों में बाग़ जलते हैं
जो अश्क़ पी भी लिए
जो होंठ सी भी लिए, तो सितम ये किसपे किए
जो अश्क़ पी भी लिए
कुछ आज अपनी सुनाओ कुछ आज मेरी सुनो
ख़ामोशिओं से तो दिल और दिमाग़ जलते हैं
जो बात कर लें तो बुझते चराग़ जलते हैं
कहो बुझें के जलें
हम अपनी राह चलें या तुम्हारी राह चलें
कहो बुझें के जलें
बुझें तो ऐसे के किसी ग़रीब का दिल
किसी ग़रीब का दिल
जलें तो ऐसे के जैसे चराग़ जलते हैं
यह खोई खोई नज़र
कभी तो होगी या सदा रहेगी उधर
यह खोई खोई नज़र
उधर तो एक सुलग़ता हुआ है वीराना
है एक वीराना
मगर इधर तो बहारों में बाग़ जलते हैं
जो अश्क़ पी भी लिए
जो होंठ सी भी लिए, तो सितम ये किसपे किए
जो अश्क़ पी भी लिए
कुछ आज अपनी सुनाओ कुछ आज मेरी सुनो
ख़ामोशिओं से तो दिल और दिमाग़ जलते हैं
हर इन्सान स्वयं को समझता है बुद्धिमान
चाहे कोई अन्य उसे दे न यह सम्मान
कुछ ऐसे ही विचार अपने बारे में
हम रखते थे
और इस खुशफहमी में
कभी तुकबन्दी
कभी कविता करते थे
अपनी अक्ल दूजों को भी
क्यों न जाए दिखाई
यह सोचकर मंच पर
हमने अपनी कविता सुनाई ।
"किस से है लिखवाई ?"
इक महिला थी चिल्लाई
"है कहाँ से चुराई ?"
किसी ने आवाज़ लगाई
पाकर ये प्रशंसा
हमें इतनी शर्म आई
कि मंच छोड़ने में
समझी हमने भलाई
आइने से पूछते है
अब जब भी
उसमें तकते है
क्या सच में इतने बुद्धू
हम शक्ल से लगते है ।।???
चाहे कोई अन्य उसे दे न यह सम्मान
कुछ ऐसे ही विचार अपने बारे में
हम रखते थे
और इस खुशफहमी में
कभी तुकबन्दी
कभी कविता करते थे
अपनी अक्ल दूजों को भी
क्यों न जाए दिखाई
यह सोचकर मंच पर
हमने अपनी कविता सुनाई ।
"किस से है लिखवाई ?"
इक महिला थी चिल्लाई
"है कहाँ से चुराई ?"
किसी ने आवाज़ लगाई
पाकर ये प्रशंसा
हमें इतनी शर्म आई
कि मंच छोड़ने में
समझी हमने भलाई
आइने से पूछते है
अब जब भी
उसमें तकते है
क्या सच में इतने बुद्धू
हम शक्ल से लगते है ।।???
सब कुछ खाक हुआ है लेकिन चेहरा क्या नूरानी है
पत्थर नीचे बैठ गया है, ऊपर बहता पानी है
बचपन से मेरी आदत है फूल छुपा कर रखता हूं
हाथों में जलता सूरज है, दिल में रात की रानी है
दफ़न हुए रातों के किस्से इक चाहत की खामोशी है
सन्नाटों की चादर ओढे ये दीवार पुरानी है
उसको पा कर इतराओगे, खो कर जान गंवा दोगे
बादल का साया है दुनिया, हर शै आनी जानी है
दिल अपना इक चांद नगर है, अच्छी सूरत वालों का
शहर में आ कर शायद हमको ये जागीर गंवानी है
तेरे बदन पे मैं फ़ूलों से उस लम्हे का नाम लिखूं
जिस लम्हे का मैं अफ़साना, तू भी एक कहानी है
पत्थर नीचे बैठ गया है, ऊपर बहता पानी है
बचपन से मेरी आदत है फूल छुपा कर रखता हूं
हाथों में जलता सूरज है, दिल में रात की रानी है
दफ़न हुए रातों के किस्से इक चाहत की खामोशी है
सन्नाटों की चादर ओढे ये दीवार पुरानी है
उसको पा कर इतराओगे, खो कर जान गंवा दोगे
बादल का साया है दुनिया, हर शै आनी जानी है
दिल अपना इक चांद नगर है, अच्छी सूरत वालों का
शहर में आ कर शायद हमको ये जागीर गंवानी है
तेरे बदन पे मैं फ़ूलों से उस लम्हे का नाम लिखूं
जिस लम्हे का मैं अफ़साना, तू भी एक कहानी है
तुझे पाने की हसरत लिए,
हमें एक जमाना हो गया !
नयी नयी शायरी,
करते तेरे पीछे,
देख मैं शायर कितना,
पुराना हो गया !
मुए इस दिल को,
संभालना पड़ता है,
हर वक़्त !
दिल न हुआ गोया,
बिन पजामे का,
नाड़ा हो गया !
मरज में न फरक,
तोहफों में खरच अलग !
इलाज में खाली सारा,
अपना खज़ाना हो गया !
दिल दर्द से भरा,
और जेबें खाली !
ग़म ही इन दिनों,
अपना खाना हो गया !
मुद्दतें हो गयी ,
रोग जाता नहीं दिखता,
अस्पताल ही अब अपना,
ठिकाना हो गया !
तू भी तो बाज़ आ कभी ,
इश्कियापन्ती से ....
पागल भी देख तुझे,
कब का सयाना हो गया
हमें एक जमाना हो गया !
नयी नयी शायरी,
करते तेरे पीछे,
देख मैं शायर कितना,
पुराना हो गया !
मुए इस दिल को,
संभालना पड़ता है,
हर वक़्त !
दिल न हुआ गोया,
बिन पजामे का,
नाड़ा हो गया !
मरज में न फरक,
तोहफों में खरच अलग !
इलाज में खाली सारा,
अपना खज़ाना हो गया !
दिल दर्द से भरा,
और जेबें खाली !
ग़म ही इन दिनों,
अपना खाना हो गया !
मुद्दतें हो गयी ,
रोग जाता नहीं दिखता,
अस्पताल ही अब अपना,
ठिकाना हो गया !
तू भी तो बाज़ आ कभी ,
इश्कियापन्ती से ....
पागल भी देख तुझे,
कब का सयाना हो गया
महका महका सा दिन चला
महकी महकी सी रात चली
बही बसंती बयार जो
साथ फ़िज़ा मैं महक चली
फूल ये पलाश के
दहक रहे है आग से
सुगंध रच-बस सी गयी
महकी महकी ये साँस चली
महका महका सा दिन चला
महकी महकी सी रात चली
नव यौवना का रूप लिए
पुष्पों का श्रृंगार किये
धानी चुनर को ओढ़ कर
वसुंधरा भी सज चली
बहारों की सौगात चली
महका महका सा दिन चला
महकी महकी ये रात चली
पेडों की टहनियों मे
खिलने लगे रंग बहार के
दूर कहीं कोयल कुहुके
पीहू-पीहू करे पपीहा रातो मे
सुर लहरियां अब बह चली
महका महका सा दिन चला
महकी महकी सी रात चली
महकी महकी सी रात चली
बही बसंती बयार जो
साथ फ़िज़ा मैं महक चली
फूल ये पलाश के
दहक रहे है आग से
सुगंध रच-बस सी गयी
महकी महकी ये साँस चली
महका महका सा दिन चला
महकी महकी सी रात चली
नव यौवना का रूप लिए
पुष्पों का श्रृंगार किये
धानी चुनर को ओढ़ कर
वसुंधरा भी सज चली
बहारों की सौगात चली
महका महका सा दिन चला
महकी महकी ये रात चली
पेडों की टहनियों मे
खिलने लगे रंग बहार के
दूर कहीं कोयल कुहुके
पीहू-पीहू करे पपीहा रातो मे
सुर लहरियां अब बह चली
महका महका सा दिन चला
महकी महकी सी रात चली
दिल ढूंढता , है फिर वही फुर्सत के रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर -ऐ -जाना किये हुए
जाड़ों की नर्म धुप और आँगन में लेट कर
आँखों पे खींच कर तेरे दामन के साए को
आँखों पे खींच कर तेरे दामन के साए को
औंधे पड़े रहें कभी करवट लिए हुए
दिल ढूंढता है ,
या गर्मियों की रात जो पुरवाइयाँ चले
ठंडी सफ़ेद चादरों पे जागें देर तक
ठंडी सफ़ेद चादरों पे जागें देर तक
तारों को देखते रहें छत पर पड़े हुए
दिल ढूंढता है ,
बर्फीली सर्दियों में किसी भी पहाड़ पर
वादी में गूंजती हुयी , खामोशियाँ सुनें
वादी में गूंजती हुयी , खामोशियाँ सुनें
आँखों में भीगे भीगे से लम्हे लिए हुए
दिल ढूंढता है ,
बैठे रहें तसव्वुर -ऐ -जाना किये हुए
जाड़ों की नर्म धुप और आँगन में लेट कर
आँखों पे खींच कर तेरे दामन के साए को
आँखों पे खींच कर तेरे दामन के साए को
औंधे पड़े रहें कभी करवट लिए हुए
दिल ढूंढता है ,
या गर्मियों की रात जो पुरवाइयाँ चले
ठंडी सफ़ेद चादरों पे जागें देर तक
ठंडी सफ़ेद चादरों पे जागें देर तक
तारों को देखते रहें छत पर पड़े हुए
दिल ढूंढता है ,
बर्फीली सर्दियों में किसी भी पहाड़ पर
वादी में गूंजती हुयी , खामोशियाँ सुनें
वादी में गूंजती हुयी , खामोशियाँ सुनें
आँखों में भीगे भीगे से लम्हे लिए हुए
दिल ढूंढता है ,
"सूरज उभरा चन्दा डूबा, लौट आई फिर शाम,
शाम हुई फिर याद आया, इक भूला बिसरा नाम"
............... ..................
क्या टूटा है अन्दर-अन्दर, क्यों चेहरा कुम्हलाया है
तन्हा-तन्हा रोने वालो, कौन तुम्हें याद आया है
चुपके-चुपके सुलग रहे थे, याद में उनकी दीवाने
इक तारे ने टूट के यारो क्या उनको समझाया है
रंग-बिरंगी महफ़िल में तुम क्यों इतने चुप-चुप हो
भूल भी जाओ पागल लोगो, क्या खोया क्या पाया है
शेर कहां हैं ख़ून है दिल का, जो लफ़्ज़ों में बिखरा है
दिल के ज़ख़्म दिखा कर हमने महफ़िल को गरमाया है
अब भी ये झूठ न बोलो, वो इतना बेदर्द नहीं
अपनी चाहत को भी परखो, गर इल्ज़ाम लगाया है
शाम हुई फिर याद आया, इक भूला बिसरा नाम"
............... ..................
क्या टूटा है अन्दर-अन्दर, क्यों चेहरा कुम्हलाया है
तन्हा-तन्हा रोने वालो, कौन तुम्हें याद आया है
चुपके-चुपके सुलग रहे थे, याद में उनकी दीवाने
इक तारे ने टूट के यारो क्या उनको समझाया है
रंग-बिरंगी महफ़िल में तुम क्यों इतने चुप-चुप हो
भूल भी जाओ पागल लोगो, क्या खोया क्या पाया है
शेर कहां हैं ख़ून है दिल का, जो लफ़्ज़ों में बिखरा है
दिल के ज़ख़्म दिखा कर हमने महफ़िल को गरमाया है
अब भी ये झूठ न बोलो, वो इतना बेदर्द नहीं
अपनी चाहत को भी परखो, गर इल्ज़ाम लगाया है
अपना दिल पेश करूँ अपनी वफ़ा पेश करूँ
कुछ समझ में नहीं आता तुझे क्या पेश करूँ
तेरे मिलने की ख़ुशी में कोई नगमा छेड़ूँ
या तेरे दर्द की जुदाई का गिला पेश करूँ
मेरे ख्वाबों में भी तू मेरे ख्यालों में भी तू
कौन सी चीज़ तुझे तुझसे जुदा पेश करूँ
जो तेरे दिल को लुभा ले वो अदा मुझमे नहीं
क्यों न तुझको कोई तेरी ही अदा पेश करूँ
कुछ समझ में नहीं आता तुझे क्या पेश करूँ
तेरे मिलने की ख़ुशी में कोई नगमा छेड़ूँ
या तेरे दर्द की जुदाई का गिला पेश करूँ
मेरे ख्वाबों में भी तू मेरे ख्यालों में भी तू
कौन सी चीज़ तुझे तुझसे जुदा पेश करूँ
जो तेरे दिल को लुभा ले वो अदा मुझमे नहीं
क्यों न तुझको कोई तेरी ही अदा पेश करूँ
जब भी चिड़ियों को बुलाकर प्यार से दाने दिये
इस नयी तहज़ीब ने इस पर कई ताने दिये
जिन उजालों ने किया अंधी गुफाओ से रिहा
बेड़ियाँ पहना के हमने उनको तहखाने दिये
हमने मांगी जरा सी रौशनी घर के लिए
मुझे जलती हुई बस्ती के नजराने दिये
हद से भी गुजरी उनके और मेरे दरमियां
लब रहे खामोश और आँखों ने अफ़साने दिये
ज़िन्दगी खुशबू से अब तक इस लिए महरूम है
हमने जिस्मों को चमन और रूहों को वीराने दिये
ज़िन्दगी चादर है धुल के साफ़ हो जाएगी
इसलिए हमने भी इसमें दाग लग जाने दिये
इस नयी तहज़ीब ने इस पर कई ताने दिये
जिन उजालों ने किया अंधी गुफाओ से रिहा
बेड़ियाँ पहना के हमने उनको तहखाने दिये
हमने मांगी जरा सी रौशनी घर के लिए
मुझे जलती हुई बस्ती के नजराने दिये
हद से भी गुजरी उनके और मेरे दरमियां
लब रहे खामोश और आँखों ने अफ़साने दिये
ज़िन्दगी खुशबू से अब तक इस लिए महरूम है
हमने जिस्मों को चमन और रूहों को वीराने दिये
ज़िन्दगी चादर है धुल के साफ़ हो जाएगी
इसलिए हमने भी इसमें दाग लग जाने दिये
इश्क है तो इश्क का इजहार होना चाहिये
आपको चेहरे से भी बीमार होना चाहिये
आप दरिया हैं तो फिर इस वक्त हम खतरे में हैं
आप कश्ती हैं तो हमको पार होना चाहिये
ऐरे गैरे लोग भी पढ़ने लगे हैं इन दिनों
आपको औरत नहीं अखबार होना चाहिये
जिंदगी कब तलक दर दर फिरायेगी हमें
टूटा फूटा ही सही घर बार होना चाहिये
अपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दें मुझे
इश्क के हिस्से में भी इतवार होना चाहिये...;)
आपको चेहरे से भी बीमार होना चाहिये
आप दरिया हैं तो फिर इस वक्त हम खतरे में हैं
आप कश्ती हैं तो हमको पार होना चाहिये
ऐरे गैरे लोग भी पढ़ने लगे हैं इन दिनों
आपको औरत नहीं अखबार होना चाहिये
जिंदगी कब तलक दर दर फिरायेगी हमें
टूटा फूटा ही सही घर बार होना चाहिये
अपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दें मुझे
इश्क के हिस्से में भी इतवार होना चाहिये...;)
सुनो ना...
सिर्फ सुनो
सबकी कहानी
सच-सपने-हक़ीक़त
सब बयां करेंगे
देखो ना...
सुकून मिलेगा
सब मुन्तज़िर हैं
नज़र-नज़ारे-शहर
सब गुमां करेंगे
कहो ना...
कुछ कहो
सब सुनेंगे
हवा-मंज़र-तन्हाई
सब बातें करेंगे
छू लो...
थामने को
सब आगे बढ़ेंगे
चाहत-ख़्वाब-साथ
सब अपना लेंगे
चलो ना...
क़दम-दो-क़दम
सब चल पड़ेंगे
रास्ता-सफ़र-मंज़िल
सब संग होंगे
महसूस करो...
हर पल, हर घड़ी
सब पा जाओगे
जज़्बात-यकीन-हौसला
सब तुम्हें जिएंगे !!!
सिर्फ सुनो
सबकी कहानी
सच-सपने-हक़ीक़त
सब बयां करेंगे
देखो ना...
सुकून मिलेगा
सब मुन्तज़िर हैं
नज़र-नज़ारे-शहर
सब गुमां करेंगे
कहो ना...
कुछ कहो
सब सुनेंगे
हवा-मंज़र-तन्हाई
सब बातें करेंगे
छू लो...
थामने को
सब आगे बढ़ेंगे
चाहत-ख़्वाब-साथ
सब अपना लेंगे
चलो ना...
क़दम-दो-क़दम
सब चल पड़ेंगे
रास्ता-सफ़र-मंज़िल
सब संग होंगे
महसूस करो...
हर पल, हर घड़ी
सब पा जाओगे
जज़्बात-यकीन-हौसला
सब तुम्हें जिएंगे !!!
जो धरती से अम्बर जोड़े ,उसका नाम मोहब्बत है
जो शीशे से पत्थर तोड़े , उसका नाम मोहब्बत है
कतरा कतरा सागर तक ,तो जाती है हर उम्र मगर
बहता दरिया वापस मोड़े, उसका नाम मोहब्बत है
बदलने को तो इन आँखों के मंजर कम नहीं बदले
तुम्हारे प्यार के मौसम , हमारे ग़म नहीं बदले
तुम अगले जन्म में हम से मिलोगी तब तो मानोगी
जमाने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले
जो शीशे से पत्थर तोड़े , उसका नाम मोहब्बत है
कतरा कतरा सागर तक ,तो जाती है हर उम्र मगर
बहता दरिया वापस मोड़े, उसका नाम मोहब्बत है
बदलने को तो इन आँखों के मंजर कम नहीं बदले
तुम्हारे प्यार के मौसम , हमारे ग़म नहीं बदले
तुम अगले जन्म में हम से मिलोगी तब तो मानोगी
जमाने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले
शाम का वक्त झील का किनारा
स्याह सा पानी,उतरा है दिल में
रूमानियत से भरी हवाएँ चूमती
मद्ध सी किरणें,यूँ लहरों पे पड़ती
समा ही हसीं है न नज़र कहीं हटती।
तीरे पे बत्तखों का इठला के आना
खोल पंख अपने,अदा से झिटक जाना
उफ ये मदहोशियत अजब सा जादू है
देख कर नज़रें,बस!!महसूस करतीं।
इक छोटा सा टुकड़ा बहता खुद आया
पल भर रुका,था कहीं टकराया
फिर इक लहर वो चल पड़ा उधर
इसी में पूरा जीवन नज़र आया।
शाम का वक्त किनारा झील का
संग अपने सुखद अहसास ले आया…
तालाब में उठी वो छोटी सी लहर
फैल जाती है जिस्म-ओ-जिगर पर
लेकिन,बहुत शांत!!!
देती है गहरी खोह,’अब’तलाशो खुद को।
समंदर की तरह न वो शोर मचाए
बरबस ही ध्यान,न कभी खीँच पाए
फिर भी जीवन से,पहचान करा जाए
वो छोटी सी लहर…
हर हाल में है शांत,न कोई कौतूहल
न इक नज़र मे,किसी को खींच पाए
दृढ़ निश्चय है जीवन,कोमलता से कह जाए
वो छोटी सी लहर…
हो कितना भी विशाल,गहरा समंदर
समेटे है लाखों,तूफान अपने अंदर
हर लहर है थपेड़ा,किसने ये जाना
जीवन है शांत,यूँ ही गुज़र जाना
फैल जाती है जिस्म-ओ-जिगर पर
लेकिन,बहुत शांत!!!
देती है गहरी खोह,’अब’तलाशो खुद को।
समंदर की तरह न वो शोर मचाए
बरबस ही ध्यान,न कभी खीँच पाए
फिर भी जीवन से,पहचान करा जाए
वो छोटी सी लहर…
हर हाल में है शांत,न कोई कौतूहल
न इक नज़र मे,किसी को खींच पाए
दृढ़ निश्चय है जीवन,कोमलता से कह जाए
वो छोटी सी लहर…
हो कितना भी विशाल,गहरा समंदर
समेटे है लाखों,तूफान अपने अंदर
हर लहर है थपेड़ा,किसने ये जाना
जीवन है शांत,यूँ ही गुज़र जाना
दिलकी हालत पे दिल ही हँसता गया ,
दूर होके भी वो आँखों में बसता गया ,
वाकिफ है रास्ते यूँ तो सारे मुझसे ,
जाने क्यों मंजिलों से फांसला बढ़ता गया ,
तेरा वादा और ज़िन्दगी की शाम ढलती सी ,
खून -ऐ -जिगर चिरागों के संग जलता गया ,
दर्द जितना भी दिया तूने हमनावाज़ ,
लफ्ज़ बनके वो शाएरी में ढलता गया ,
राह जो वो कांटो की थी चुनी मैंने ,
बस एक तेरा ही करम के में चलता गया ,
न अब ज़मीन की खबर न आसमान का पता ,
में जाने किन अंधेरों में गुम सा गया ...
दूर होके भी वो आँखों में बसता गया ,
वाकिफ है रास्ते यूँ तो सारे मुझसे ,
जाने क्यों मंजिलों से फांसला बढ़ता गया ,
तेरा वादा और ज़िन्दगी की शाम ढलती सी ,
खून -ऐ -जिगर चिरागों के संग जलता गया ,
दर्द जितना भी दिया तूने हमनावाज़ ,
लफ्ज़ बनके वो शाएरी में ढलता गया ,
राह जो वो कांटो की थी चुनी मैंने ,
बस एक तेरा ही करम के में चलता गया ,
न अब ज़मीन की खबर न आसमान का पता ,
में जाने किन अंधेरों में गुम सा गया ...
तुम को देखा जैसे दरपन देख रहा हूँ .
कहीं छिपा तुम में अपना मन देख रहा हूँ.
नैन नासिका अधर कर्ण सुंदर सी ग्रीवा ,
एक सपन का भूमि अवतरन देख रहा हूँ.
कविता का सौन्दर्य तुम्ही से आया मुझ में,
फिर बरसे यह बादल, गर्जन देख रहा हूँ.
सूत्रपात हो तुम मधुरिम साहित्य निधि का,
रूप तुम्हारे में अनुपम धन देख रहा हूँ.
चाहूँ- प्यार करूँ -दिल में रखूं या गाऊं,
क्यूँ है तुम से यह आकर्षण देख रहा हूँ.
मधुर तुम्हारे सपने नैन चुराते आते ,
खुली आँख से वह आलिंगन देख रहा हूँ.
जय माँ भारती
कहीं छिपा तुम में अपना मन देख रहा हूँ.
नैन नासिका अधर कर्ण सुंदर सी ग्रीवा ,
एक सपन का भूमि अवतरन देख रहा हूँ.
कविता का सौन्दर्य तुम्ही से आया मुझ में,
फिर बरसे यह बादल, गर्जन देख रहा हूँ.
सूत्रपात हो तुम मधुरिम साहित्य निधि का,
रूप तुम्हारे में अनुपम धन देख रहा हूँ.
चाहूँ- प्यार करूँ -दिल में रखूं या गाऊं,
क्यूँ है तुम से यह आकर्षण देख रहा हूँ.
मधुर तुम्हारे सपने नैन चुराते आते ,
खुली आँख से वह आलिंगन देख रहा हूँ.
जय माँ भारती
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