loving poetry

Saturday 26 May 2012

Saza ye kaisi mili Hume Dil lagane ki
Ro rahe hai magar tamanna thi Muskurane ki
Apna dard kise dikhau dard bhi usi ne diya 
jo Wajha thi Muskurane ki
Dost pyar se bhi bada hota hai,
Har sukh aur gham mein saath hota hai,
Tabhi Krishna Radha ke liye nahi,
per Sudhama ke liye rota hai.
जब रौशनी ही नहीं तो सूरज के जलने का क्या मतलब
अब इन बाँहों में यूँही पिघलने का क्या मतलब..........
मालूम है जब नहीं तय कर पाओगे मंजिल तक का सफ़र
तो फिर दो कदम यूँही साथ में टहलने का क्या मतलब
Mere bus mein ho to ,
Lahron ko itna bhi haq na dun,
Likhun kinare pe tera naam,
Aur use chhune bhi na dun.
 Ladkiyon ke hathon main
mehndi achi lagti hai...
Aur ladkon ke hathon main...
Mehndi wale h
ath.

Friday 25 May 2012

• Smile Is Like Simcard
And Life Is Cellphone
Whenever U Insert The Sim Of Smile
A Beautiful Day Is Activated
So Keep Smiling Always

Thursday 24 May 2012

Kisi Ne Bhee Apni Kismat Nahi Dekhi
Aur Kismat Ne Shayad Meri Himmat Nahi Dekhi
Jo Kehte Hai Ki Duriyo Se Pyar Kam Hota Hai
Usne Shayad Meri Mohabbat Nahi Dekhi… …

Monday 21 May 2012


बात इतनी सी हो कि,बस बात हो जाये
एक बार फिर उनसे कही, मुलाकात हो जाये
.
इक उम्र से देखा ही नहीं,सावन मैंने
तेरी आँखों से मिलूं,और, बरसात हो जाये
.
बड़ी मुश्किल से हैं,नूर-ऐ-चारागा रोशन
जल जाने दो मुझको कि,न तर्क रात हो जाये
.
थक गया हूँ मिलकर ,जुदा हो होकर
अब के कुछ ऐसे मिलूं ,कि कायनात हो जाये

Sunday 20 May 2012

♥... दिल तख़्त नशीं ...♥
.
.
.
क्यूँ ज़माने पे ऐतबार करूँ
अपनी आँखों को अश्कबार करूँ
सिर्फ़ ख्वाबों पे ऐतबार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ

मेरी रग-रग में है महक तेरी
मेरे चेहरे पे है चमक तेरी
मेरी आवाज़ में खनक तेरी
ज़र्रे - ज़र्रे में है धनक तेरी

क्यूँ न मैं तुझपे दिल निसार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ

तुझपे कुरबां करूँ हयात मेरी
तुझसे रोशन है कायनात मेरी
बिन तेरे क्या है फिर बिसात मेरी
जाने कब होगी तुझसे बात मेरी

कब तलक दिल को बेक़रार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ

मेरी आँखों की रोशनी तू है
मेरी साँसों की ताजगी तू है
मेरी रातों की चांदनी तू है
मेरी जां तू है, ज़िन्दगी तू है

हर घड़ी तेरा इन्तिज़ार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूं

तू ही उल्फ़त है, तू ही चाहत है
अब फ़क़त तेरी ही ज़रूरत है
हसरतों की ये एक हसरत है
इश्क़ से बढ़के भी इबादत है?

तुझको ख्वाबों से क्यूँ फरार करूँ
दिल ये कहता है तुझसे प्यार करूँ
नैनो मे बसे है ज़रा याद रखना,
अगर काम पड़े तो याद करना,
मुझे तो आदत है आपको याद करने की,
अगर हिचकी आए तो माफ़ करना.......

ये दुनिया वाले भी बड़े अजीब होते है
कभी दूर तो कभी क़रीब होते है
दर्द ना बताओ तो हमे कायर कहते है
और दर्द बताओ तो हमे शायर कहते है .......


एक मुलाक़ात करो हमसे इनायत समझकर,
हर चीज़ का हिसाब देंगे क़यामत समझकर,
मेरी दोस्ती पे कभी शक ना करना,
हम दोस्ती भी करते है इबादत समझकर.........


ख़ामोशियों की वो धीमी सी आवाज़ है ,
तन्हाइयों मे वो एक गहरा राज़ है ,
मिलते नही है सबको ऐसे दोस्त ,
आप जो मिले हो हमे ख़ुद पे नाज़ है.....
Kagaz Ki Kashti Thi,Pani Ka Kinara Tha
Khelne Ki Masti Thi,Dil Ye Awara Tha
Kahan Aa Gaye Is Samjhdari K Daldal Me
Wo Nadaan Bachpan Hi Kitna Pyara Tha....:
पर्व ज्वाला का, नहीं वरदान की वेला !
न चन्दन फूल की वेला !

चमत्कृत हो न चमकीला
किसी का रूप निरखेगा,
निठुर होकर उसे अंगार पर
सौ बार परखेगा
खरे की खोज है इसको, नहीं यह क्षार से खेला !

किरण ने तिमिर से माँगा
उतरने का सहारा कब ?
अकेले दीप ने जलते समय
किसको पुकारा कब ?
किसी भी अग्निपंथी को न भाता शब्द का मेला !

किसी लौ का कभी सन्देश
या आहूवान आता है ?
शलभ को दूर रहना ज्योति से
पल-भर न भाता है !
चुनौती का करेगा क्या, न जिसने ताप को झेला !
खरे इस तत्व से लौ का
कभी टूटा नहीं नाता
अबोला, मौन भाषाहीन
जलकर एक हो जाता !
मिलन-बिछुड़न कहाँ इसमें, न यह प्रतिदान की वेला !

सभी का देवता है एक
जिसके भक्त हैं अनगिन,
मगर इस अग्नि-प्रतिमा में
सभी अंगार जाते बन !
इसी में हर उपासक को मिला अद्वैत अलबेला !

न यह वरदान की वेला
न चन्दन फूल का मेला !
पर्व ज्वाला का, न यह वरदान की वेला।

किसी ने कहा फूल से की ,
मुझको बता तू आज तक क्यों खिलता रहा ,
तुने तो दी सबको
खुशबु तुझको क्या मिलता रहा ?
फूल ने मुस्कुरा कर कहा ,
अभी तू नादान है .
जीवन की सच्चे प्यार से ,
अभी तू अन्जान है .
देने के बदले कुछ लेना ,
वो तो एक कारोबार है .
जो दे कर भी कुछ न मांगे ,
वो ही सच्चा प्यार है
कि कुछ टूट गया है...!..?


सागर न समाओगे कि कुछ टूट गया है
जीता ही जलाओगे कि कुछ टूट गया है..

हँस हँस के किसी कोर के अश्कों को रौंद कर
क्या क्या न बताओगे कि कुछ टूट गया है..

अपनी तलाश में कि जो तुम चाँद तक गये
क्या लौट भी पाओगे कि कुछ टूट गया है..

चेहरे पे नया चेहरा लिये मिल जो गया वो
क्या हाँथ मिलाओगे कि कुछ टूट गया है..

हर ओर पीठ पीठ है "शाम भीड में
क्या साथ निभाओगे कि कुछ टूट गया है
छोटी-सी ज़िन्दगी में कितनी नादानी करे
इस नज़ारों को कोई देखे कि हैरानी करे
धूप में इन चश्मों को लिए फिरता हूँ मैं
कोई साया मेरे ख़्वाबों की निगहबानी करे


रात ऐसी चाहिए माँगे जो दिनभर का हिसाब
ख़्वाब ऐसा हो जो इन आँखों में वीरानी करे

एक मैं हूँ और दस्तक कितने दरवाज़ों पे दूँ
कितनी दहलीज़ों पे सज़दा एक पेशानी करे

साहिलों पर मैं खड़ा हूँ प्यासों की तरह
कोई जल-तरंग मेरी आँख को पानी करे

कौन है जिसने मय नहीं पी है ,
कौन झूठी कसम उठाता है ,
मयकदे से जो बच निकलता है
तेरी आँखों में डूब जाता है
कभी पा के तुझको खोना कभी खो के तुझको पाना
ये जनम जनम का रिश्ता तेरे मेरे दरमियाँ हैं
उन्हीं रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे
मुझे रोक-रोक पूछा तेरा हमसफ़र कहाँ है
लौटने पर शेष है
या कुछ कि मेरे बाद कितना
देखना है इस गली में
कौन किसको याद कितना

अपने प्रेम को लिखने के लिए
शब्द ढूंढे
पर छोटे लगे
अलंकर ,संजा ,रस सब बहते रहे
फिर भी कुछ अधूरा रहा
मैने कागज पर
रख दिए लब
और कविता पूरी होगई
भूल गया घर-आँगन यादों से बाहर बाज़ार हुआ
आज बहुत दिन बाद बेख़ुदी में ख़ुद का दीदार हुआ

टूट गये नाते-रिश्ते सब, चैन लूटते हाथों से
औरों की आँसुओं-भरी आँखों से कितना प्यार हुआ

लगा कि हर रस्ता अपना है हर ज़मीन है अपनी ही
अपनेपन से हरा-भरा हर दिन जैसे त्यौहार हुआ

बैठा रहा चैन से, जाते लोग रहे क्या-क्या पाने
पर जब दी आवाज़ शजर ने जाने को लाचार हुआ

‘कल सोचूँगा-क्या करना है’, कहता रहा मेरा रहबर
बीता कितना वक़्त और यह वादा कितनी बार हुआ

ख़ुद के लिए रहे बनते तुम तरह-तरह की दीवारें
खुली हवा से बह न सके, जीवन सारा बेकार हुआ

कब तक फैलाते जाओगे सौदे वहशी ख़्वाबों के
तुम भी अब दूकान समेटो, शाम हुई अंधियार हुआ

आओ थोड़ा वक़्त बचा है साथ-साथ हँस लें, गालें
लेन-देन का हिसाब जो हुआ सो मेरे यार हुआ
"Friendship..!!
It Is Not History To Forget
It Is Not Maths To Calculate
It Is Not English To Learn
But
Its Just Like a KOLAVERI SONG
No Need To Understand
Just Enjoy It".. !
SomeTimes WHen I SAy "I M OkAy", 
I want SOMEOne To Look ME In The Eyes,
Hug Me Tight And Say "I KNOW YoU ARE NOt"
It feel GREAT when someone hugs you that tine.
मेरी खामोशियों में भी फसाना ढूंढ लेती है

बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है

हकीकत जिद किए बैठी है चकनाचूर करने को

मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है



उठाती है जो खतरा हर कदम पर डूब जाने का

वही कोशिश समन्दर में खजाना ढूंढ लेती है

जुनूं मंजिल का, राहों में बचाता है भटकने से

मेरी दीवानगी अपना ठिकाना ढूंढ लेती
सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं
मांगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं

देखा तुझे सोचा तुझे चाहा तुझे पूजा तुझे
मेरी ख़ता मेरी वफ़ा तेरी ख़ता कुछ भी नहीं

जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाये रात भर
भेजा वही काग़ज़ उसे हमने लिखा कुछ भी नहीं

इक शाम की दहलीज़ पर बैठे रहे वो देर तक
आँखों से की बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं

दो चार दिन की बात है दिल ख़ाक में सो जायेगा
जब आग पर काग़ज़ रखा बाकी बचा कुछ भी नहीं

अहसास की ख़ुश्बू कहाँ आवाज़ के जुगनू कहाँ
ख़ामोश यादों के सिवा घर में रहा कुछ भी नहीं
!!...ख़्वाब सुहाना बन गया अच्छा...!!


ग़म का फ़साना बन गया अच्छा
एक बहाना बन गया अच्छा
सरकार ने आके मेरा हाल तो पूछा
ग़म का...

तुम्हारे ख़यालों में खो जायें
ये जी चाहता है की सो जायें
देखो बातों-बातों में चाँदनी रातों में
ख़्वाब सुहाना बन गया अच्छा...

बतायें तुम्हें क्या कहाँ दर्द है
यहाँ हाथ रखना यहाँ दर्द है
देखो बातों बातों में दो ही मुलाकातों में
दिल ये निशाना बन गया अच्छा...

मुहब्बत की रंगीन महफ़िल में
जगह मिल गई आपके दिल में
देखो बातों-बातों में प्यार की बरातों में
अपना ठिकाना बन गया अच्छा...

कहाँ जायेगी यह झंकार
जब नीरव हो जायेंगे जीवन-वीणा के तार

जब यह दीपक बुझ जायेगा
कहाँ प्रकाश शरण पायेगा!
किस अनंत में मँडरायेगा
चेतन खो आधार!

सभी ज्ञान, विज्ञान, बुद्धिबल
तन के साथ न जायेंगे जल!
यदि चित् महाचेतना से कल
हो ले एकाकार!

जड़ता से जब चलूँ विदा ले
चेतन भी यदि साथ छुड़ा ले
निज को किसके करूँ हवाले
खोल शून्य का द्वार!

कहाँ जायेगी यह झंकार
जब नीरव हो जायेंगे जीवन-वीणा के तार
कभी खुद को मैं ढूंढूं इस तरफ इक बार, ऐसा हो
निगाहे-रूह तुझ पर हो टिकी उस पार, ऐसा हो

मैं राहे-जिन्दगी में जिनको पीछे छोड़ आया था
वो यादें सब की सब आयें कभी उस पार, ऐसा हो

वो कुछ अशआर रिस कर गिर गए लब से कहीं मेरे
तेरे लब पे दिखाई दें मुझे उस पार, ऐसा हो

बहुत दिन से तुझे मैं दूर से ही चाहता हूँ, अब
लगूं खुल के गले तुझसे सरे-बाज़ार, ऐसा हो

किनारे पर खड़े हो कर तमाशा देखने वाला
कभी आके यहाँ हमसे मिले मंझधार, ऐसा हो

मेरे नगमे रहें ज़िंदा, भले ही नाम मिट जाये
फ़क़त मशहूर हो मुझमें छिपा फनकार, ऐसा हो .
उस रात मैं बहुत डर रहा था
क्योंकि मैं एक कब्रिस्तान के पास से गुजर रहा था
एक तो मौसम बदहाल था
और दूसरा गर्मी से मेरा बुरा हाल था
अचानक मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं
जब मेरी नजरें कब्र पर बैठे एक आदमी पर चढं गईं
मैंने कहा इतनी रात को यहां से कोई
भूलकर भी नहीं फटकता
यार तू कब्र पर बैठा है
तुझे डर नहीं लगता
मेरी बात सुनते ही वो ऐंठ गया
बोला इसमें डरने की क्या बात है
कब्र में गरमी लग रही थी,
इसलिए बाहर आके बैठ गया...
 
 
 
 
 
है समय प्रतिकूल माना
पर समय अनुकूल भी है।
शाख पर इक फूल भी है॥

घन तिमिर में इक दिये की
टिमटिमाहट भी बहुत है
एक सूने द्वार पर
बेजान आहट भी बहुत है

लाख भंवरें हों नदी में
पर कहीं पर कूल भी है।
शाख पर इक फूल भी है॥

विरह-पल है पर इसी में
एक मीठा गान भी है
मरुस्थलों में रेत भी है
और नखलिस्तान भी है

साथ में ठंडी हवा के
मानता हूं धूल भी है।
शाख पर इक फूल भी है॥

है परम सौभाग्य अपना
अधर पर यह प्यास तो है
है मिलन माना अनिश्चित
पर मिलन की आस तो है

प्यार इक वरदान भी है
प्यार माना भूल भी है।
शाख पर इक फूल भी है॥

वो चुप रहें तो मेरे दिल के दाग़ जलते हैं
जो बात कर लें तो बुझते चराग़ जलते हैं

कहो बुझें के जलें

हम अपनी राह चलें या तुम्हारी राह चलें
कहो बुझें के जलें
बुझें तो ऐसे के किसी ग़रीब का दिल
किसी ग़रीब का दिल
जलें तो ऐसे के जैसे चराग़ जलते हैं

यह खोई खोई नज़र
कभी तो होगी या सदा रहेगी उधर
यह खोई खोई नज़र
उधर तो एक सुलग़ता हुआ है वीराना
है एक वीराना
मगर इधर तो बहारों में बाग़ जलते हैं

जो अश्क़ पी भी लिए
जो होंठ सी भी लिए, तो सितम ये किसपे किए
जो अश्क़ पी भी लिए
कुछ आज अपनी सुनाओ कुछ आज मेरी सुनो
ख़ामोशिओं से तो दिल और दिमाग़ जलते हैं

Bell Has No Sound Till Someone rings it,
Song Has No tune till someone sings it,
So Never Hide your feelings Becoz
 it has No Value till someone feels it...

एक समुन्दर है के मेरे मुकाबिल है ,
एक कतरा है के मुझ से संभाला नहीं जाता ,
कितनी गलियाँ कितने मोड़
तेरी खातिर आया छोड़
भटकन तेरा अंत नही है
जितनी गलियाँ उतने मोड़…..


हर इन्सान स्वयं को समझता है बुद्धिमान
चाहे कोई अन्य उसे दे न यह सम्मान
कुछ ऐसे ही विचार अपने बारे में
हम रखते थे
और इस खुशफहमी में
कभी तुकबन्दी
कभी कविता करते थे
अपनी अक्ल दूजों को भी
क्यों न जाए दिखाई
यह सोचकर मंच पर
हमने अपनी कविता सुनाई ।

"किस से है लिखवाई ?"
इक महिला थी चिल्लाई
"है कहाँ से चुराई ?"
किसी ने आवाज़ लगाई
पाकर ये प्रशंसा
हमें इतनी शर्म आई
कि मंच छोड़ने में
समझी हमने भलाई
आइने से पूछते है
अब जब भी
उसमें तकते है
क्या सच में इतने बुद्धू
हम शक्ल से लगते है ।।???
मोहब्बतों में अगर कोई रस्म ओ राह ना हो
सुकून तबाह ना हो , ज़िन्दगी गुनाह ना हो

कुछ एहतियात भी लाजिम है दिल्लगी के लिए
किसी से प्यार अगर हो तो बेपनाह ना हो

इस एहतियात से मै तेरे साथ चलता हूँ
तेरी निगाह से आगे मेरी निगाह ना हो

मेरा वजूद है सच्चाईयों का आइना
यह और बात के मेरा कोई गवाह ना हो

सब कुछ खाक हुआ है लेकिन चेहरा क्या नूरानी है
पत्थर नीचे बैठ गया है, ऊपर बहता पानी है



बचपन से मेरी आदत है फूल छुपा कर रखता हूं
हाथों में जलता सूरज है, दिल में रात की रानी है



दफ़न हुए रातों के किस्से इक चाहत की खामोशी है
सन्नाटों की चादर ओढे ये दीवार पुरानी है




उसको पा कर इतराओगे, खो कर जान गंवा दोगे
बादल का साया है दुनिया, हर शै आनी जानी है



दिल अपना इक चांद नगर है, अच्छी सूरत वालों का
शहर में आ कर शायद हमको ये जागीर गंवानी है



तेरे बदन पे मैं फ़ूलों से उस लम्हे का नाम लिखूं
जिस लम्हे का मैं अफ़साना, तू भी एक कहानी है
रब्ब की क़व्वाली .....है इश्क कोई.!
दिल की दिवाली ......है इश्क कोई !
महकी सी प्याली .....है इश्क कोई !
सुबह की लाली ........है इश्क ..♥...!

गिरता सा झरना .....है इश्क कोई !
उठता सा कलमा .....है इश्क कोई !
साँसों में लिपटा .......है इश्क कोई !
आँखों में दीखता .....है इश्क ....(♥ ♥)
तुझे पाने की हसरत लिए,
हमें एक जमाना हो गया !
नयी नयी शायरी,
करते तेरे पीछे,
देख मैं शायर कितना,
पुराना हो गया !

मुए इस दिल को,
संभालना पड़ता है,
हर वक़्त !
दिल न हुआ गोया,
बिन पजामे का,
नाड़ा हो गया !

मरज में न फरक,
तोहफों में खरच अलग !
इलाज में खाली सारा,
अपना खज़ाना हो गया !

दिल दर्द से भरा,
और जेबें खाली !
ग़म ही इन दिनों,
अपना खाना हो गया !

मुद्दतें हो गयी ,
रोग जाता नहीं दिखता,
अस्पताल ही अब अपना,
ठिकाना हो गया !

तू भी तो बाज़ आ कभी ,
इश्कियापन्ती से ....
पागल भी देख तुझे,
कब का सयाना हो गया
इश्क़ को शिर्क की हद तक न बढ़ा
यूं न छुप हम से ख़ुदा हो जैसे

यूं न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे
साथ चल मौज-ए-सबा हो जैसे

महका महका सा दिन चला
महकी महकी सी रात चली
बही बसंती बयार जो
साथ फ़िज़ा मैं महक चली

फूल ये पलाश के
दहक रहे है आग से
सुगंध रच-बस सी गयी
महकी महकी ये साँस चली

महका महका सा दिन चला
महकी महकी सी रात चली

नव यौवना का रूप लिए
पुष्पों का श्रृंगार किये
धानी चुनर को ओढ़ कर
वसुंधरा भी सज चली
बहारों की सौगात चली

महका महका सा दिन चला
महकी महकी ये रात चली

पेडों की टहनियों मे
खिलने लगे रंग बहार के
दूर कहीं कोयल कुहुके
पीहू-पीहू करे पपीहा रातो मे
सुर लहरियां अब बह चली

महका महका सा दिन चला
महकी महकी सी रात चली

दिल ढूंढता , है फिर वही फुर्सत के रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर -ऐ -जाना किये हुए

जाड़ों की नर्म धुप और आँगन में लेट कर

आँखों पे खींच कर तेरे दामन के साए को

आँखों पे खींच कर तेरे दामन के साए को
औंधे पड़े रहें कभी करवट लिए हुए
दिल ढूंढता है ,

या गर्मियों की रात जो पुरवाइयाँ चले
ठंडी सफ़ेद चादरों पे जागें देर तक

ठंडी सफ़ेद चादरों पे जागें देर तक
तारों को देखते रहें छत पर पड़े हुए
दिल ढूंढता है ,

बर्फीली सर्दियों में किसी भी पहाड़ पर
वादी में गूंजती हुयी , खामोशियाँ सुनें

वादी में गूंजती हुयी , खामोशियाँ सुनें
आँखों में भीगे भीगे से लम्हे लिए हुए
दिल ढूंढता है ,
"सूरज उभरा चन्दा डूबा, लौट आई फिर शाम,
शाम हुई फिर याद आया, इक भूला बिसरा नाम"


............... ..................

क्या टूटा है अन्दर-अन्दर, क्यों चेहरा कुम्हलाया है
तन्हा-तन्हा रोने वालो, कौन तुम्हें याद आया है

चुपके-चुपके सुलग रहे थे, याद में उनकी दीवाने
इक तारे ने टूट के यारो क्या उनको समझाया है

रंग-बिरंगी महफ़िल में तुम क्यों इतने चुप-चुप हो
भूल भी जाओ पागल लोगो, क्या खोया क्या पाया है

शेर कहां हैं ख़ून है दिल का, जो लफ़्ज़ों में बिखरा है
दिल के ज़ख़्म दिखा कर हमने महफ़िल को गरमाया है

अब भी ये झूठ न बोलो, वो इतना बेदर्द नहीं
अपनी चाहत को भी परखो, गर इल्ज़ाम लगाया है

"Honey Bees must tap two hundred flowers to make one drop of honey.."

So we Can say;
The Sweetest reward comes from the hardest struggle..
अपना दिल पेश करूँ अपनी वफ़ा पेश करूँ
कुछ समझ में नहीं आता तुझे क्या पेश करूँ

तेरे मिलने की ख़ुशी में कोई नगमा छेड़ूँ
या तेरे दर्द की जुदाई का गिला पेश करूँ

मेरे ख्वाबों में भी तू मेरे ख्यालों में भी तू
कौन सी चीज़ तुझे तुझसे जुदा पेश करूँ

जो तेरे दिल को लुभा ले वो अदा मुझमे नहीं
क्यों न तुझको कोई तेरी ही अदा पेश करूँ
"रंग, दुनिया ने दिखाया है निराला देखूं ,
है अँधेरे में उजाला तो उजाला,देखूँ ,
आइना रख दे मेरे सामने आखिर मैं भी ,
कैसा लगता है तेरा चाहने वाला देखूँ.....
जान !...तुम-पर निसार करता हूँ ...
मैं नहीं जानता ...वफ़ा ! क्या है ...

दिल-ऐ-नादाँ !... तुझे ...हुआ क्या है ..
आखिर इस-दर्द की ....दवा !..क्या है ...

मैंने माना ! है-कुछ-नहीं ! ग़ालिब ...
मुफ्त हाथ आये तो ..बुरा ! क्या है ...
..........दिल-ऐ-नादाँ !... :)


मेरे प्यार को बेवफाई का नाम दे गई,

मेरे दिल को यादों का पैगाम दे गई,


मैंने कहा मेरे दिल में दर्द है


तो जालिम झंडू बाम दे गई.

उस मोड़ से शुरू करें फिर ये ज़िन्दगी
हर शय जहाँ हसीन थी, हम तुम थे अजनबी

लेकर चले थे हम जिन्हें जन्नत के ख़्वाब थे
फूलों के ख़्वाब थे वो मुहब्बत के ख़्वाब थे
दिल में मेरे ख्याल आए तो,
बात उनकी जुबान पर आती है,
सब मेरे हाल पर परेशान है,
एक वह हैं कि मुस्कुराती है!!..:(..................
आँधियों में और चलिए ,
लड़खड़ाते अब कहाँ तक ,
एक आवारा धुऐं से ,
उड़िए किस किस आसमान तक .


ग़म की गहरी खाइयों में ,
और बहियेगा कहाँ तक ,
हाथ में अंगार रखिये ,
और कितने इम्तिहान तक .


ढूँढने के सिलसिले दिल ,
और कितने कारवां तक ,
चल चलें अब तो सफ़र पर ,
इस जहां से उस जहां तक .
मोहब्बत और मौत दोनों बिन बुलाये मेहमान की तरह होते हैं
कब आ जाए कोई नहीं जानता
लेकिन दोनों का एक ही काम होता है
एक दिल ले जाती है
और दूसरी धड़कन ले जाती है
फिर चाँद खिला,फिर रात थमी,

फिर दिल ने कहा,है तेरी कमी,

फिर यादो के झोके महक गये,

फिर पागल अरमान बहक गये,

फिर जन्नत सी लगती है ज़मीन,

फिर दिल ने कहा,है तेरी कमी,

फिर गुजरे लम्हो की बाते,

फिर जाग गयी सारी राते,

फिर ठहर गयी पलको मे नमी,

फिर दिल ने कहा,है तेरी कमी,है तेरी कमी
जब भी चिड़ियों को बुलाकर प्यार से दाने दिये
इस नयी तहज़ीब ने इस पर कई ताने दिये

जिन उजालों ने किया अंधी गुफाओ से रिहा
बेड़ियाँ पहना के हमने उनको तहखाने दिये

हमने मांगी जरा सी रौशनी घर के लिए
मुझे जलती हुई बस्ती के नजराने दिये

हद से भी गुजरी उनके और मेरे दरमियां
लब रहे खामोश और आँखों ने अफ़साने दिये

ज़िन्दगी खुशबू से अब तक इस लिए महरूम है
हमने जिस्मों को चमन और रूहों को वीराने दिये

ज़िन्दगी चादर है धुल के साफ़ हो जाएगी
इसलिए हमने भी इसमें दाग लग जाने दिये

इश्क है तो इश्क का इजहार होना चाहिये
आपको चेहरे से भी बीमार होना चाहिये

आप दरिया हैं तो फिर इस वक्त हम खतरे में हैं
आप कश्ती हैं तो हमको पार होना चाहिये

ऐरे गैरे लोग भी पढ़ने लगे हैं इन दिनों
आपको औरत नहीं अखबार होना चाहिये

जिंदगी कब तलक दर दर फिरायेगी हमें
टूटा फूटा ही सही घर बार होना चाहिये

अपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दें मुझे
इश्क के हिस्से में भी इतवार होना चाहिये...;)
सुनो ना...
सिर्फ सुनो
सबकी कहानी
सच-सपने-हक़ीक़त
सब बयां करेंगे

देखो ना...
सुकून मिलेगा
सब मुन्तज़िर हैं
नज़र-नज़ारे-शहर
सब गुमां करेंगे

कहो ना...
कुछ कहो
सब सुनेंगे
हवा-मंज़र-तन्हाई
सब बातें करेंगे

छू लो...
थामने को
सब आगे बढ़ेंगे
चाहत-ख़्वाब-साथ
सब अपना लेंगे

चलो ना...
क़दम-दो-क़दम
सब चल पड़ेंगे
रास्ता-सफ़र-मंज़िल
सब संग होंगे

महसूस करो...
हर पल, हर घड़ी
सब पा जाओगे
जज़्बात-यकीन-हौसला
सब तुम्हें जिएंगे !!!
बीमार को मर्ज़ की दवा देनी चाहिए ,
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए

ईश्वर बरकतों से भर देगा इश्क में ,
है जितनी पूंजी पास लगा देनी चाहिए

मैं ताज हूँ तो ताज को सर पर सजायें लोग
मैं ख़ाक हूँ तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए
यूँ इश्क-ओ-मोहब्बत की दुकान मत चला!..कुछ समझ मेरे जज़्बात गुमान मत चला!!
तू गर सही है तो सामना कर सवालों का!..गर गलत है तो चुपचाप रह ज़ुबां मत चला!!

आ बैठ करीब दो-चार बातें कर लें!... मुँह से फूल बिखेर कमान मत चला!!

कुछ गलतियाँ कर, माफ़ी माँग, इंसान बन!... तू खुदा नहीं है ज़मीन-ओ-आसमान मत चला!!
जो धरती से अम्बर जोड़े ,उसका नाम मोहब्बत है
जो शीशे से पत्थर तोड़े , उसका नाम मोहब्बत है
कतरा कतरा सागर तक ,तो जाती है हर उम्र मगर
बहता दरिया वापस मोड़े, उसका नाम मोहब्बत है




बदलने को तो इन आँखों के मंजर कम नहीं बदले
तुम्हारे प्यार के मौसम , हमारे ग़म नहीं बदले
तुम अगले जन्म में हम से मिलोगी तब तो मानोगी
जमाने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले

तूफानों से आँख मिलाओ ,सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोडो ,तैर के दरिया पार करो
फूलों की दुकाने खोलो ,खुशबू का व्यापार करो
इश्क खता है तो ये खता ,एक नहीं सौ बार करो

शाम से रास्ता तकता होगा
चांद खिड़की में अकेला होगा
धूप की शाख़ पे तनहा-तनहा
वह मुहब्बत का परिंदा होगा
नींद में डूबी महकती सांसें
ख़्वाब में फूल-सा चेहरा होगा

मैं जब भी तेज चलता हूँ नज़ारे छूट जाते हैं
कोई जब रूप गढ़ता हूँ तो सांचे टूट जाते हैं
मैं रोता हूँ तो आकर लोग कन्धा थप थापते हैं
मैं हँसता तो मुझसे लोग अक्सर रूठ जाते हैं
जीवन है हसीन फिर भी
मन उदास है

खुशियाँ सारी पास फिर क्या
ख़्वाब है

दिन रात की ये मस्ती कब तक
साथ देगी

क्या ज़िंदगी के मायनों को
तलाश देगी

अर्थहीन ज़िंदगी का फ़ायदा
ही क्या

पाषाण में,खुद में फिर फर्क
ही क्या

रोपो एक पौधा जिसे जीवन
दे सको तुम

खुशी है यही गर इसे समझ
सको तुम…

बैठे बिठाये बेवजह की मोल हमने मुसीबत ले ली,
अपने ख्वाब से बदलकर जब उसकी हकीकत ले ली....

शाम का वक्त झील का किनारा
स्याह सा पानी,उतरा है दिल में
रूमानियत से भरी हवाएँ चूमती

मद्ध सी किरणें,यूँ लहरों पे पड़ती
समा ही हसीं है न नज़र कहीं हटती।
तीरे पे बत्तखों का इठला के आना

खोल पंख अपने,अदा से झिटक जाना
उफ ये मदहोशियत अजब सा जादू है
देख कर नज़रें,बस!!महसूस करतीं।

इक छोटा सा टुकड़ा बहता खुद आया
पल भर रुका,था कहीं टकराया
फिर इक लहर वो चल पड़ा उधर

इसी में पूरा जीवन नज़र आया।
शाम का वक्त किनारा झील का
संग अपने सुखद अहसास ले आया…

टूटता बदन’ इश्क की थकान है
हर अँगड़ाई पे,खिँचा तेरा नाम है,
उफ!ये टूटन,है कितनी बेदर्द
चली आती हर सुबह-शाम है













तालाब में उठी वो छोटी सी लहर
फैल जाती है जिस्म-ओ-जिगर पर
लेकिन,बहुत शांत!!!
देती है गहरी खोह,’अब’तलाशो खुद को।

समंदर की तरह न वो शोर मचाए
बरबस ही ध्यान,न कभी खीँच पाए
फिर भी जीवन से,पहचान करा जाए
वो छोटी सी लहर…

हर हाल में है शांत,न कोई कौतूहल
न इक नज़र मे,किसी को खींच पाए
दृढ़ निश्चय है जीवन,कोमलता से कह जाए
वो छोटी सी लहर…

हो कितना भी विशाल,गहरा समंदर
समेटे है लाखों,तूफान अपने अंदर
हर लहर है थपेड़ा,किसने ये जाना
जीवन है शांत,यूँ ही गुज़र जाना
"हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग,
रो रो के बात कहने की आदत नहीं रही ...."
पता नहीं किस सच से किस की मर्यादा भंग हो जाए,
लेकिन सच तो बोलना पड़ेगा ....मुहँ तो खोलना पड़ेगा
मिल गया था जो मुकद्दर, वो खो के निकला हूँ
मैं एक लम्हा हूँ , हर बार रो के निकला हूँ
राहे दुनिया मैं मुझे कोई भी दुश्वारी नहीं
मैं तेरी जुल्फ के पेचों से होके निकला हूँ
पनाहों में जो आया हो ,तो उस पर वार क्या करना ?
जो दिल हरा हुआ हो ,उस पे फिर अधिकार क्या करना ?
मुहोब्बत का मज़ा तो डूबने की कशमकश में है ,
जो हो मालूम गहराई ,तो दरिया पर क्या करना
बहुत बिखरा बहुत टूटा , थपेड़े सह नहीं पाया
हवाओं के इशारों पर मगर मैं बह नहीं पाया
अधूरा अनसुना ही रह गया यूं प्यार का किस्सा
कभी तुम सुन नहीं पायी , कभी मैं कह नहीं पाया
पत्थर ह्रदय जगत है प्यारे
तू जग को नवनीत बना
..........धर्म जाति के बंधन टूटे
..........ऐसी कोई रीत बना
प्रेम प्रीत सिखलाये जो
ऐसा कोई गीत बना
दिलकी हालत पे दिल ही हँसता गया ,
दूर होके भी वो आँखों में बसता गया ,

वाकिफ है रास्ते यूँ तो सारे मुझसे ,
जाने क्यों मंजिलों से फांसला बढ़ता गया ,

तेरा वादा और ज़िन्दगी की शाम ढलती सी ,
खून -ऐ -जिगर चिरागों के संग जलता गया ,

दर्द जितना भी दिया तूने हमनावाज़ ,
लफ्ज़ बनके वो शाएरी में ढलता गया ,

राह जो वो कांटो की थी चुनी मैंने ,
बस एक तेरा ही करम के में चलता गया ,

न अब ज़मीन की खबर न आसमान का पता ,
में जाने किन अंधेरों में गुम सा गया ...
इश्क़ से जब रूह का रिश्ता जुदा हो जाएगा

ज़िन्दगी का रंग ही फिर दूसरा हो जाएगा

आपने जब तोड़ डाली शर्म की सब सरहदें

रफ़्ता-रफ़्ता हर कोई फिर बेहया हो जाएगा....!!


तुम को देखा जैसे दरपन देख रहा हूँ .
कहीं छिपा तुम में अपना मन देख रहा हूँ.
नैन नासिका अधर कर्ण सुंदर सी ग्रीवा ,
एक सपन का भूमि अवतरन देख रहा हूँ.
कविता का सौन्दर्य तुम्ही से आया मुझ में,
फिर बरसे यह बादल, गर्जन देख रहा हूँ.
सूत्रपात हो तुम मधुरिम साहित्य निधि का,
रूप तुम्हारे में अनुपम धन देख रहा हूँ.
चाहूँ- प्यार करूँ -दिल में रखूं या गाऊं,
क्यूँ है तुम से यह आकर्षण देख रहा हूँ.
मधुर तुम्हारे सपने नैन चुराते आते ,
खुली आँख से वह आलिंगन देख रहा हूँ.

जय माँ भारती