loving poetry

Sunday 20 May 2012

"सूरज उभरा चन्दा डूबा, लौट आई फिर शाम,
शाम हुई फिर याद आया, इक भूला बिसरा नाम"


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क्या टूटा है अन्दर-अन्दर, क्यों चेहरा कुम्हलाया है
तन्हा-तन्हा रोने वालो, कौन तुम्हें याद आया है

चुपके-चुपके सुलग रहे थे, याद में उनकी दीवाने
इक तारे ने टूट के यारो क्या उनको समझाया है

रंग-बिरंगी महफ़िल में तुम क्यों इतने चुप-चुप हो
भूल भी जाओ पागल लोगो, क्या खोया क्या पाया है

शेर कहां हैं ख़ून है दिल का, जो लफ़्ज़ों में बिखरा है
दिल के ज़ख़्म दिखा कर हमने महफ़िल को गरमाया है

अब भी ये झूठ न बोलो, वो इतना बेदर्द नहीं
अपनी चाहत को भी परखो, गर इल्ज़ाम लगाया है

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