loving poetry

Sunday 20 May 2012



तुम को देखा जैसे दरपन देख रहा हूँ .
कहीं छिपा तुम में अपना मन देख रहा हूँ.
नैन नासिका अधर कर्ण सुंदर सी ग्रीवा ,
एक सपन का भूमि अवतरन देख रहा हूँ.
कविता का सौन्दर्य तुम्ही से आया मुझ में,
फिर बरसे यह बादल, गर्जन देख रहा हूँ.
सूत्रपात हो तुम मधुरिम साहित्य निधि का,
रूप तुम्हारे में अनुपम धन देख रहा हूँ.
चाहूँ- प्यार करूँ -दिल में रखूं या गाऊं,
क्यूँ है तुम से यह आकर्षण देख रहा हूँ.
मधुर तुम्हारे सपने नैन चुराते आते ,
खुली आँख से वह आलिंगन देख रहा हूँ.

जय माँ भारती

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