loving poetry

Sunday 20 May 2012

जब भी चिड़ियों को बुलाकर प्यार से दाने दिये
इस नयी तहज़ीब ने इस पर कई ताने दिये

जिन उजालों ने किया अंधी गुफाओ से रिहा
बेड़ियाँ पहना के हमने उनको तहखाने दिये

हमने मांगी जरा सी रौशनी घर के लिए
मुझे जलती हुई बस्ती के नजराने दिये

हद से भी गुजरी उनके और मेरे दरमियां
लब रहे खामोश और आँखों ने अफ़साने दिये

ज़िन्दगी खुशबू से अब तक इस लिए महरूम है
हमने जिस्मों को चमन और रूहों को वीराने दिये

ज़िन्दगी चादर है धुल के साफ़ हो जाएगी
इसलिए हमने भी इसमें दाग लग जाने दिये

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