loving poetry

Sunday 20 May 2012

जान !...तुम-पर निसार करता हूँ ...
मैं नहीं जानता ...वफ़ा ! क्या है ...

दिल-ऐ-नादाँ !... तुझे ...हुआ क्या है ..
आखिर इस-दर्द की ....दवा !..क्या है ...

मैंने माना ! है-कुछ-नहीं ! ग़ालिब ...
मुफ्त हाथ आये तो ..बुरा ! क्या है ...
..........दिल-ऐ-नादाँ !... :)

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