loving poetry

Sunday 20 May 2012

दिलकी हालत पे दिल ही हँसता गया ,
दूर होके भी वो आँखों में बसता गया ,

वाकिफ है रास्ते यूँ तो सारे मुझसे ,
जाने क्यों मंजिलों से फांसला बढ़ता गया ,

तेरा वादा और ज़िन्दगी की शाम ढलती सी ,
खून -ऐ -जिगर चिरागों के संग जलता गया ,

दर्द जितना भी दिया तूने हमनावाज़ ,
लफ्ज़ बनके वो शाएरी में ढलता गया ,

राह जो वो कांटो की थी चुनी मैंने ,
बस एक तेरा ही करम के में चलता गया ,

न अब ज़मीन की खबर न आसमान का पता ,
में जाने किन अंधेरों में गुम सा गया ...

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