loving poetry

Sunday 20 May 2012

कि कुछ टूट गया है...!..?


सागर न समाओगे कि कुछ टूट गया है
जीता ही जलाओगे कि कुछ टूट गया है..

हँस हँस के किसी कोर के अश्कों को रौंद कर
क्या क्या न बताओगे कि कुछ टूट गया है..

अपनी तलाश में कि जो तुम चाँद तक गये
क्या लौट भी पाओगे कि कुछ टूट गया है..

चेहरे पे नया चेहरा लिये मिल जो गया वो
क्या हाँथ मिलाओगे कि कुछ टूट गया है..

हर ओर पीठ पीठ है "शाम भीड में
क्या साथ निभाओगे कि कुछ टूट गया है

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