हर इन्सान स्वयं को समझता है बुद्धिमान
चाहे कोई अन्य उसे दे न यह सम्मान
कुछ ऐसे ही विचार अपने बारे में
हम रखते थे
और इस खुशफहमी में
कभी तुकबन्दी
कभी कविता करते थे
अपनी अक्ल दूजों को भी
क्यों न जाए दिखाई
यह सोचकर मंच पर
हमने अपनी कविता सुनाई ।
"किस से है लिखवाई ?"
इक महिला थी चिल्लाई
"है कहाँ से चुराई ?"
किसी ने आवाज़ लगाई
पाकर ये प्रशंसा
हमें इतनी शर्म आई
कि मंच छोड़ने में
समझी हमने भलाई
आइने से पूछते है
अब जब भी
उसमें तकते है
क्या सच में इतने बुद्धू
हम शक्ल से लगते है ।।???
चाहे कोई अन्य उसे दे न यह सम्मान
कुछ ऐसे ही विचार अपने बारे में
हम रखते थे
और इस खुशफहमी में
कभी तुकबन्दी
कभी कविता करते थे
अपनी अक्ल दूजों को भी
क्यों न जाए दिखाई
यह सोचकर मंच पर
हमने अपनी कविता सुनाई ।
"किस से है लिखवाई ?"
इक महिला थी चिल्लाई
"है कहाँ से चुराई ?"
किसी ने आवाज़ लगाई
पाकर ये प्रशंसा
हमें इतनी शर्म आई
कि मंच छोड़ने में
समझी हमने भलाई
आइने से पूछते है
अब जब भी
उसमें तकते है
क्या सच में इतने बुद्धू
हम शक्ल से लगते है ।।???
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