loving poetry

Monday 28 May 2012

हर बार टुटा हूँ मैं, हर बार लुटा हूँ मैं,
फिर भी जी जान से जुटा हूँ मैं........
[ शायद यही मुहब्बत है ]

हर बार चला हूँ मैं, हर बार ठहरा हूँ मैं
हर बार निखरा हूँ मैं, हर बार बिखरा हूँ मैं
हर बार उगा हूँ मैं, हर बार ढला हूँ मैं
हर बार छला हूँ मैं, हर बार जला हूँ मैं,

फिर भी इन राहों पर हर बार चला हूँ मैं
[ शायद यही मुहब्बत है ]

दिनेश गुप्ता 'दिन'

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